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पष्टमाम ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध ++
मैकप्पा जाव झियाई ॥ ३४ ॥ तणं तीसे धारिणीयदेवीए अंगपडियारियाओ अभितरियाओ दास चेडियाओ धारिणीदेवी ओलयं जाव ज्झियायमाणिं पासइ२ त्ता एवं वयासी-
किणं तुमं देवाणुप्पिया! ओलयसरीर जाव झियायासि ? ॥ तएणं सा धारीणीदेवी ताहिय अंगपडिचारियहि अभितरियाओ ताओ दासचेडिओ णो अढाइ णो परियाणेइ, अणाढायमाणी तुसिणीया संचिट्ठइ ॥ ३५॥ तएणं ताओ अंगपडिया रियाओ दासचेउियाहिं दोचंपि तच्चपि एवं वुत्तसमाणी णो आढाइ णों परिजाणाइ
अणाढायमाणा तुसिणीया संचिट्ठति ॥ ३६॥ तएणं ताओ अंगपडियारिओ अन्भिकिया, दीन, दुर्मनवाली, आनंद रहित भूमिगत दृष्टिबाली, मन के संकल्पों जिन को नष्ट होगये हैं वैसी | होती हुई यावत् आध्यान ध्याने लगी ॥३४॥ अब धारणी देवीको उनकी अंग परिचारिकाओं अंगरक्षिकाव आभ्यंतर चेटियों यावत् आर्तध्यान करनी हुइ देखकर कहने लगी-अहो देवातुप्रिय! किस लिये तुम दुर्बल शरीरवाली यावत् आर्तध्यान करती हो ? तब धारणी देवी उक्त अंग परिचारिका च आभ्यंतरिक दासियों को आदर सत्कार दीया नहीं व उनके वचनोको अच्छे जाने नहीं. परंतु मौन रही॥३५॥३॥ अंगपरिचारिका व आभ्यंतरिक दासियोंने दो तीनवार ऐसा कहा ताईपि उस को आदर सत्कार कीया नहीं परंतु मौन रही ॥ ३६ ॥ जब अंग परिचारिका व आभ्यंतर चेटियों धारणी देवीसे अनादर
भावार्थ
उरिक्षप्त (मेषकुमार ) का प्रथम अध्ययन 424
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