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13 त इन्छामिग देवाणुप्पिया ! तव अंतिए जिणवयणं निसामित्तए।ततेणं सुबुद्दी अमचे :
जियसत्तुस्स रणो विचित्तं केवलि पणत्तं चाउजामं धम्मपरिकहति, तमाइक्सति जहा जीवा बुझंति, जाव पंचअणुवयाणि ॥ ततेणं जियारतू सुबुद्धिस्स अतिए ४८१ धम्म सोचा निसम्म इट्ट, तुझे सुबुद्धि अमचं एवं क्यासी-सहहामिणं देवाणुप्पिया ! जिग्गंथं पावयणं ३, जाव से जहेयं तुम्मे वदह तं. इच्छामिणं तत्र अंतिए पंचाप्रावतियं सत्चसिरखावतियं जाव उवसंपजित्ताणं विहरिचए ?, अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह ॥ ततणं ते जियसत्तू सुबुद्धिस्स अमवस्स अंतिए
पुदि प्रधान जिता राजा को विचित्र प्रकार का केवलि प्रकापित पार पामरूप धर्म का जीवों जैसे दुझते हैं वैसा भी कहा यावत् पांच अनुवन का अधिकार कहा. तब नितश राजा सुबुद्धि प्रधान की पास . से धर्म सुनकर हष्ट तुष्ट हुए और मुबंदि प्रधान को ऐमा कहा कि अहो देवानुप्रिय ! निIय के प्रवचन की श्रदा करता हूं यावत् भैसे आप कहते हो।
से में तुम्हारी पास पांच अनुव्रत व सात शिक्षा व्रत अंगीकार कर विचरना चाहता हूँ. भो 17देवानुप्रिय ! तुम को असं मुख होचे वैसा करो इस में पिलम मत करो. वा शिवशत्रु राजाने मुधि ।।
बनवादक-पासमचारी मुनि श्रीबमोळकपिजी
.महाशक-राजाबहादुर काला मुरुदेवसहायणी यालामसादमी
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मर्य
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