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का प्रथम श्रुतरख 43 +8+ पटांग हातधर्मकथा
} असदहमाणे ३ आमतरठाणिजे पुरिसे सदावेप्ति २. ता. एवं वयासी-गन्छहणं तुम्भे
देवाणुपिया ! अंतरावणातो नवघडए गिण्हह जाव उदगसंभारमिज्जेहिं - दव्वेहिं
संभारेहातेवि तहेव संभारेति,जियसत्तुस्स रन्नो उवणेति।।ततेणं जियसत्तूराया तं उदगरयणं . :- करयलांस आसाएति २ आसायणिज जाव सब्विादिय गाय पल्हायणिज्जं जाणित्ता,
सुबुद्धि अमच्च सहावइ २त्ता एवं क्यासी-सुबुद्धीए! एणतम संता तच्चा जाव सब्भूया भावा को उबलद्धा ? ततणं सुबुद्दी जीयसत्तू एवं वयासी-एसणं सामी ! मए संता
जाव भावा जिणवयणातो उवलद्धा ॥ १६ ॥ ततेणं जियसत्तू सुबुद्धि एवं वासीबोलकर ऐमा कहा अहो देवानुप्रिय ! उस खाइ में से नये घडे ले जाकर पानी भर लामो यात् पानी के सब संभार से उसे स्वच्छ करों. उन ले.गोंने भी वैसे ही किया, फीर जिवशत्रु की पास ल ये. जित शत्रु राना ने उस पानी को देखकर उसे मायलेकर उम का आस्वादन किया. उभे पीने योग्य व सब.
इन्द्रियों को प्रियकारी जानकर सबुद्ध अशको इमकार कहने लगे कि अहो मुद्धि ! तुमने ऐसे विद्यपान 63थ्य यावत् भूत भाव कहां से जाना ? तब प्रधानने उत्ता दिया स्व मिन् ! मैंने ये भाव मिन वचन *
से जानामा १६॥ तब राजाने कहा कि भो सुद्धि ! मैं तुम्हारी पास से जिन वचन सुनने को च हवा .
बुद्धवान का बारहवा अध्ययन +2
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