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नवादक-बाल ब्रह्मचारी मनि श्री अटक ऋषिजी
एवं खलु सामी ! तुम्हे तइया मम एवमाइक्खमाण त ४ एयमटुं णो महह ।। तएणं ममं इमेयारूवे अझथिए चितिए पत्थिए मणीगर संकप्पे मुजित्था-अहोणं जियमत्तुराया संते जाव भावे णो सहहइ णो पत्तियइ णो रोएति त सेयं खलु मम जियमत्तूस्स रणो संताणं जाव समाणं जिण पण्णत्ताणं भावणं अभिगमण?याए एयमट्र उवाथणावेत्तए॥एवं संपेहइ २, एवं तंचेव जाव पाणियधरिय परिसं सदावेति पाणियध रयं सदावेइत्ता एवं वयासी तुमणं देवाणप्पिय ! उदगम्यणं जियसत्तस्मरणो भोयणवेलाए उवणेहि ॥ तं एएणं कारणेणं सामी एस फरिहोदए ॥ १५ ॥ ततेणं जियसत्तू राया सुबुद्धिस्स अमच्चस्स एवमातिक्खमाणस्म ४ एयमटुं नो सद्दहति २त्ता व मनोगत संकल्प हुवा कि जितश्व राजा विद्यमान भावों को नहीं श्रद्धा हैं. उम की प्रीति नहीं करते हैं. इस से जितश्चू राना को विद्यमान जिन प्रणत पदार्थों को समजाने के लिये उप य करना चाहिये. ऐमा विचार कर मेरे विश्वासु मनुष्यों की साथ मंध्या समय उस खाद का पानी लेने को गया, और पानी सच्छ कर आपके पानी लानेवाले मनुष्यों को बोल कर दिया और 3 भाजन समय परूपने का कहा. स्वामिन् ! यह उम ही स्वाइ का पानी है ॥ १५ ॥ मुबुद्धि प्रधान के ।इस कथन पर जितशत्रु राजा को श्रद्धा प्रतीति व विश्वास नहीं हुवा जिस से अपने खानगी पुरुषों को
महाक-राजावादर बाळा सुखवसहायजी सलाप्रमादजी
अर्थ
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