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________________ म श्रुतस्कन्ध 4211 पष्टवानाधर्मकथा का पागिधरए जियसत्तुरयं एवं बवासी-एसणं सामी ! मए उदगरयणे सुबुद्धिरम अंतियाओ आसाइए ॥ तएणं जियसस्तूराया सुबुद्धिअमचं सहावेइ २ त्ता एवं वयासी-अहोणं सुबुद्धी ! अहं तव अणि? ५ जेणं तुम ममं कलाकल्लिं भोयणवेलाए इमं उदगरयणं ण उट्ठवेसि ॥ तएणं तुमे देवाणुप्पिया ! उदगग्यणे कओ उबलडे ? ॥ तएणं सबुद्धी अमच्चे जियमत्तु रायं एवं व्याप्ती-एसणं सामी ! से फरिहोदए ॥ तरण से जियसत्तू राया सुचुहिं अमचं एवं वयासी-केणं कारणेणं सुबुद्धी अमचे! एस फरिहादए? ॥ तएणं सुबुद्धी अमच जियसत्तु रायं एवं वयासीउत्तर दिया कि अहो पापेन ! यह पानी सुबुद्धि प्रधान के वहां से मिला है. तब राजाने सुत्र दि पवन को बोलाकर कहा कि अहो सुद्धि! क्या में तो अनिष्ट हूं कि जब में भोजन करने को तब तुम ऐसा पानी नहा छा देते हो. हा देवानुप्रिय ! यह पानी तुम कहां से लाये हो ? तब सद्ध प्रधानने जितशत्रु राजा को एमा कहा कि अहो स्वामिन् ! यह बाइ का पानी है. राजाने पुन:{" प्रश्न किया कि वह खाइ का पानी किस तरह हो सकता है? तब प्रधानने उत्तर दिया कि आपने उस /दिया मुझे कहा था यावन् मेरे कपर पर आपने श्रद्धा नहीं की थी तब मुझे ऐसा अध्यबसाय, चिंता, शर्वना सुदिप्रधान का बारहवा अध्ययन link Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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