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________________ बालबमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी + सुबडिस्स अमच्चस्स एयमटुं पडिमुणेति एयमढें पडिणेत्ता,तं उदगरयणं गेण्हति २ ता । जियसत्तुस्सरण्णा भोयणलाए उभट्टवेति२ ॥१३॥ ततेणं सो जयसत्तुराया तं विउलं असण पाणं खाइमं साइमं आस एमाणा विसाएमाणा जाव विहरइ, जिमियभुत्तुत्तगगए वियणं जाव परमसूईभूए तसि उदगरयणंसि जाय विम्हए, ते बहबे राईसर जाव एवं वयासी-अहोणं देवाणुप्पिया ! इमे उदगरयणं अच्छे जाव 'सविदिषगायपल्हाय हिजे तएणं से बहवे राईसर जाव एवं वयासी- तहेणं सामी ! जण्ण तुम्भे वयह जाव तंचेव पल्हायणिजे ॥ १४ ॥ तण जियसत्तूराया पाणियधरयं पुरिसं सहावेइ २ त्ता एवं वयासी-एसण देवाणुप्पिया ! उदगरयणे कओ आसादिए ? ॥ तएणं से लेकर पितात्रु राजा को भोजन समय में पड़ा. ॥ १३ ॥ नितश राजा पिपुल अशनादिका आस्वाद करता हुवा विचरने लगा. जिमकर यांचन परम भुचि भून हुए पोछ पानी पाकर विस्मित हुआ. और बहुत ईश्वा मंगरर को ऐसा कहने लगा अहो देवानुपिय ! यह उदक स्वच्छ यावत् सब इन्द्रियों में का आनंदकारी है. उस समय बहुत राजेश्वर यावत् एना बोलने लगे अहा स्वामिन् !} मे आप कहते हो वैसे है आनंद कारी है. ॥१४॥ जितशत्र राजा अपने पानी देने वाले को बोर कहने लग-कि अहो देवानुपिय! यह पानी कहां से लाये तब उनाने । प्रकाशक साजाबहादुर लाला मुखदेव सहारज ज्वालापमा जो. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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