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________________ vainiwand लब्रह्मचारीमुनि श्री अपोल : ऋषिनी + अनुदकला उवागच्छ३ ३ त्ता तं फरेहोदगं गिण्हावेति २ त्ता नवएसु घडए पु गालवेति २ ता नवएसु घडएसु पक्खिवावेति २ त्ता सजवारं पक्खिवावेति २ त्ता लंछिय मुदए कगवेइ, सत्तरत्तं परिवासावेति २ दोच्चपि णवएस घडएसु गालावति २ त्ता सज्जखारं पक्खिवावेति २त्ता लछिय मदिय कारावेति २ त्ता सत्तरत्तं परिवासावति २, तच्चपि नएस घडएस जाव संत्रामावति संवासत्ता ॥ एवं खलु एएणं उबाएणं अंतरा गालावेमाणे अतरा पक्खिवावेमाण अंतरा अवसावमाणे सत्तसत्तरातिदियाति परिवासावेति २ त्ता ॥ ततणं से परिहादए सनम सत्तयसि परिणममाणंसि उदगरयणे जाए पावि होत्था, अच्छे पत्थे जच्चे तेणुए फ लियवाभ, पानी वाली खाइकी पाम जाकर उसमें से पानी लिया. उस पानीको छानकर नये धडे में पानी भर लिया, उस में सजवार (राग्व) डालकर घडे को मुद्रेन कर दिया, उस घडे को सात अहोरात्रि तक एकति में रखकर दो मीन वार नये घडे में उसके पानी को छान , फोर राख डालकर उसे मुद्रित कर सात अहोर त्रि पर्यंत रखा. और तासरी वार मये घडे में पानी छाना, इसी तरह राख डालना व सात दिन " रखना फर उस पानी को छानना. यों करने लगा. इस तरह सात सप्ताह पर्यंत उमरख इका पानीको बदलते वह उदक रत्न हुश. वह पानी आरोग्य काग. स्वच्छ, जतिवंत व स्पटिक रत्न समान वर्ण, रस प्रकाशक रानावहादुर लालासुखदवसहायजी ज्वाला प्रसादजी. લઈ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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