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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
"खाइमें साइमं केइ विम्हए, ॥ एवं खलु सामी ! सुभिसहाय पागला दुठिभ सद्दत्ताए परिण मंति, दुबिभसद्दावि पोग्गला सुभिमदत्ताए परिणमंति; सुरूवावि पोग्गला दुरूपत्ताए परिणमंत दुरूवात्रि पोग्गला सुरूवत्ताए परिणमंति; सुब्भिगधावि पोग्गल। दुभिगंधत्ताए परि गमंति, दुभगंधा व प.ग्गला भिगंधत्ताए परिणमंति सुरस'वि पं.ग्गला दुरसत्ताए परिणमंति, दरसावि पोग्गला सुरसत्ताए परिणमंति, सुहफासाव पगला दुहफ.साए परिणमंति, दुइफासावि पोग्गला हफासत्ताए परिणमंति, पओगविससा वियणं परिणयावियणं सामी पोग्गला पण्णत्ता ॥६॥ ततेणं मात्र भी सिस्मित नहैं। हुवा हूं. अहो सामिन् ! सुरभि शब्दवाले पुद्गल दुभि शब्दपने परिणयन है और दुरभि शब्दवाल पुद्गल सामि शब्दपने परिणमत हैं, सुरूपवाले पुद्गल दुष्टरूपपने परिणमते हैं और दुष्टरूपवाले पुद्गल सुरू पन परिणम हैं, मुरभिांववाले पुद्गल दुरभिगंधपने परिणमने हैं और दुरभिगंधवाले पुद्गल सुरभिगंपने परिणमत हैं, अच्छे रमवाले पुद्गल खराब रसपने परिणम हैं और ख ग रसवले पुल अच्छे रसपने परिणमते हैं, अच्छे स्पर्शवाले पुद्गल खराव स्पर्शपने परिणपत हैं, और खग स्पर्श वल पुद्गल अच्छ सशंपो परिणमत हैं. क्यों कि अहो स्वा मन् ! प्रयाग वश्रिा पुद्गल कहे हुए हैं ॥६॥
•पक शक राजाबहदुर लाला सुखदेक्समय जाज्वाल प्रमादजी
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