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________________ 4.28 टांगताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध in जियसत्तुराय एवं वयास:-हे वणं मामी अण्णं तुम्भे यह अहोणं इमे मणुणे असणं पाणं खाइमं साइमं वणेणं उत्रवेए जावपल्हायणिज्जे॥तएणं जियसत्तूगया सुबुई अमच्चं एवं क्यासी-अहोणं सुबुद्धि अमच्चे इमे मणुण्णे असणं ४ जाव पल्हायणिजे ततेणं सुबद्धी अमच्च जियसत्त रायस्म एयमटुं ना आढाति जाव तुप्तिणीए चिट्ठति ॥ ततेणं जियसत्तू सुबुड अमञ्च दोच्चपि तच्चपि एवं वनामी-अहोणं सुबुद्धी !इम मणुन्न तंत्र पल्हायणिजे ? ॥ तएणं सुबुद्धी अमच्चे जियसत्तुणा रन्ना दोचंपि तच्चंपि एवं वुत्ते समाणे जियसत्तुरायं एवं क्यासी-नो खलु सामी! अम्ह एयंसि मणुन्नंसि असणं पाणं वाला है, व व इन्द्रिय व गात्रों को पानंद करनेवाला है. न वे बहुन राजेश्वर यावत् सार्थवाह प्रमुख कहने लगे कि अहा स्वामिन् जैसे आप कहते हो वैसे ही है. यह अशन दि वर्ण उपपेन यावत् आनंद - कारी है. तब जितशत्रु राजाने मुबुद्धि प्रधान को कहा कि अहो सुद्धि प्रधान ! यह मश भशन दिय बत् भानंदकारी है. तब जितशत्रु राजा के इस अर्थका मुबुद्धि प्रधानने आदर किया नहीं यावत् मौन रहा. जिनशन रानाने दुपगं बार भी एसा कहा कि अहो सुबुद्ध ! यह मनोज्ञ अशनादि यावत् आनंदकारी 5. जब जितशत्रु गनाने मुबुद प्रधार को दो तीन बार ऐसा कहा कि यह मनाज्ञ अशनादि यावत् आनंदकारी है. तब मुषद प्रधान ने उत्तर दिया कि अहो स्वामिन ! मैंन मन प्रशनाद में किंचि मुबुद्धप्रधान का बारहवा अध्ययन 4.2 4 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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