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महासत्तो सण : विकिरत सेहजसपि पडिकलं ॥ ८ ॥ एक्का
रसमं णायज्झयणं सम्मत्तं ॥ ११ ॥ महन करने से विमार्ग की आराधना होती है. ॥ ७॥ अपण धर्म की आराधना करने में चित्तवाला महा सतत सर्व प्रकार की क्रिया करता हुवा सब प्रतिकुल को सम्यक् प्रकार से सहन करे. यह अग्यारहवा अध्ययन मंपूर्ण दुवा. ॥ ११ ॥ . . . . .
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यहां ज्ञाताधर्मक्था का प्रथम श्रतस्कन्ध 498
दाबद्रव वृक्षों का इग्यारहना अध्ययन 4
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