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अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अधासक ऋषि
॥ हादश अध्ययनम् ॥ जतिणं भंते - समशेणं भगवया महावीरणं जाव सपत्तणं एकारसमस णायज्झय.
रस अयमद्वे पण्णत्त बारसमस्सणं भंते ! णायझयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? ॥ एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा न म णयरी पुण्णभदंए चेहए, जियमत्त राया होत्था ॥ १ ॥ तरतणं जियतत्तुस्सरन्नो धारिणी णामं देवीहोत्था, अर्हण सुकुमाल जाव सुरूवा ॥ २ ॥ तस्मणं जियसत्तुस्तरन्नो पुत्ते धरिणीए अत्तए अदीणसत्तणामं कुवारे जुबरायःवि होत्थ ॥ ३ ॥ सुबुद्धी अमच्च, जाब रजधुगचिंतए समणोवासए
अहो भगवन् ! आपण भावन महाबीर सापीने ज्ञ ता मूत्र के अग्यार हुवे अध्ययन का उक्त अर्थ कहा तो बारहवा अध्ययन का क्या अर्थ कहा ? अहो जम्बू ! उस कल उस समय में चंपा नाम की नगरी थी, पूर्णभद्र चैत्य था, ब जित शत्रु राना था ॥ १ ॥ उम जिशिव राजा को धारणी नाम की देश थी वह मब अंगोपांग महिन सकोमल यावत् मुरूपा थी ॥ २ ॥ उस जितशत्रु गजा का पुत्र व पारणी देवी का अरमन अदीनशबु नाम का कुमार युराना था ॥३॥ उस को मबुद्धि नाम
.प्रकाशक-सजावह दर लाला सुखदध महायजी ज्वालाप्रसादजी.
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