________________
अर्थ
• अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
aणं जाव णट्टे मंडलेगं ॥ एवमेत्र समगाउसो जो अम्हं णिग्गंथोत्रा निरिंगधीवा जापतिए समाणे होणे खतीए एवं मुत्तीए गुत्तीए अजत्रेण मदण लाघवेणसच्चेणंतत्रेणं चियाए-अकिंचनघाए-वंभचरवासेणं ॥ तयाणतर च णं होणे हीणतराए, खंतीए जात्र बंभचेरवामेण एवं खलु एएणं कमण परिहायमाण २ टु ती जात्र ट्टे + चरवासेणं || ३ || से जहा वा सुक्कपक्खरस पाडिया चद अमावासाचंदं पणिहाय आहए वण्णेणं जाव अहिए मंडलेणं ॥ त्रयाणंतरं चणं बीयाएचंदे पाडिया चंद पणिहाय अहिययराए वण्णणं जात्र अहिययराए मंडलणं ॥ एव खलु एए कमेणं परिमाणे परिमाणं जाय पुन्निमाचंद च उद्दिसि चदं पणिहाय पडिपुन्ने वर्णणं जा पडिपुणे मंडलेणं ॥ एवमेव समणाउसो ! जाव पव्जतिए समाणे अहिए { मंडल से हीन होता है ऐसे ही अहो आयुष्मन्त श्रपणो ! हमारे जो साधु माधी यावत् प्रव्रजित बनकर क्षमा, मुक्ति, गुपि, ऋजुता, मृदुता, लघुना, मत्य, तप, त्याग निर्ममत्व व ब्रह्मचर्य इन दश प्रकार के यते धर्म से हीन होते हैं वे तदनन्तर क्षमा यावत् ब्रह्मवर्य में हीन व डीन्तर होते हैं || ३ || जैसे शुक्ल पक्ष में प्रतिदा का चंद्र अपावास्या के चंद्र की अपेक्षा वर्ण यावत् मंडल से अधिक होता है वैसे ही तदनन्तर द्वितीया का चंद्र प्रतिपदा का चंद्र से अधिकतर होता है और इसी तरह अनुक्रम से वृद्धि पाते पूर्णिमा का
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
* हा राजाबहादुरलाला सुखदेवमहायजी ब्वालाप्रसादजी ●
४५८
www.jainelibrary.org