________________
४५७
in षष्टांग ज्ञाताधर्मकथाका प्रथम श्रुतस्कंध 42g
धम्मसोच्चा परिसा पडिगया ॥ २ ॥ तयण गोयमे समणं गवं महागीरं एवं क्यास:कहणं भंत ! जीवा वखंतिया हायतिबा ? गामा ! से जहा नामए बहुलपक्खस्स पाडिवया चदे पुषिणमाचंदे पणिहाय हीणे वण्णेणं हीणे सोमयाए होणे निद्वयार हींग कंत.ए हीणे एवं दित्तीए जुत्तीए छायाए पमाए. उयाए लेस्साए मंडलेणं ॥ तयाणं. तरं घणं बीया चंदे पाडिययं चद पणिहाय हीणतराए वणणं जाव मंडलण ॥ तयाणंतरं च ततियाए चंदे बितियाचदं पणिहाय हणितराए वण्णेणं जाव मंडलेणं ॥
एवं खलु (एणं कमेणं परिहायमाणे २ जाव अमावासा चंदे चाउद्दसिचंद पणिहाय णष्टे धर्म सुनकर सब परिषदा पछी गई ॥ २ ॥ उस समय गौतम स्वामीने श्राण भगांत महावीर स्वामी को ऐसा कहा कि अहो भगवन् ! जीब कैसे वृद्धि पाते हैं व हीन होते हैं ? अहो मौतम ! जैसे कृष्णपक्ष में प्रतिपदा का चंद्र पूर्णिमा के चंद्र से हीन होता है, वर्ण, सौम् ता, स्निग्रता, कांति, दीप्ति, युत, छ , प्रभा, ओज, लेण्या, व मंडल से हीन होना है, तावत् द्वितीया का चंद्र प्रतदा के चंद्र श्री
वर्ण यावत् मंडल से हीनतर होता है. तदनंतर तृतीग का चंद्र द्वितीया के चंद्र से वर्ण यात् मंडल से Vीन देता है, इस तरह क्रमशीन करते हो यावत अमावस्या का चंद्र चतुर्दशी के चंद्रसे वर्ण यात्र
1948 चंद्रमा का दशवा अध्ययन 4.4M
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org