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________________ सत्र अनुवादक-बालबमाचारीमान श्री अमाळकऋषिमी ॥ दशम अध्ययनम् ॥ जतिणं भंते ! समणेणं भगव्या महावीरेण जाब संपरुण नवमस्त नायज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते, दसमस्सणं भंते ! नायज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबु ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नाम नयरे होत्या, तस्थणं सेणिए णामं राया होत्था; तस्मणं रायगिहस्य बहिया उत्तरपुच्छिम दिसीभाए एत्थणं गुणसीलए णाम घइए होत्था ॥ १ ॥ नेणं कालेणं तणं समएणं समजे भगवं महावीरे पुवाणुपुति चरमाणे जाव मेणेव गुणसीलए चइए तेगेव समोसढ, परिसा जिग्गया, सेणिओ वि रायाणग्गओ, जब श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी यावत् पोक्ष पधारे उनने ज्ञाता धर्म कथा के नववा अध्ययन का या अर्थ कहा बो ज्ञाता धर्म कक्षा के दशवा अध्ययन का क्या अर्थ कहा ? अहा जम्! उस काल उस सम राअगृह नामक मगर था, सम में श्रेणिक राजा रहता था, उस राजगृह नगर की बाहिर ईशाकून में गुणशील नाम का उद्यान था ॥ १ ॥ उस काल उस समय में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पूर्वानु-a पूर्ण चलने यावत् गुमशीर उद्यान में पधारे, परिषदा आई, श्रेणिक राजा भी वंदन करने को नीकला, .प्रकाशक-राजदर बाळा मुखदेवसहायकी कर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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