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सत्र
बमुपादकारी मानिकी बमोगली
॥ १८ ॥ एवं बलु जंबु ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तणं नवमस्स नापज्झयणस्स अपम? पण्णत्ते तिबेमि ॥ नवमं नायज्झयणं सम्मतं ॥ ९ ॥ गाथा-जह रयणदीवदेवी, तह इत्थं अविरइ महा पावा, जइ लाभर यावणिया तह सुहकामा इहं मीषा ॥१॥जह तेहिं भीए है दिट्ठो, भाषायमंडले पुरिसो॥ संसार दुक्लभीपा, पावंति तहेव धम्मकहं ॥ २ ॥ जह तेणं तेसिं कहिया, देवी दुक्खाण कारणं ॥ घोरंतस्तुणिय णिस्थारो, सेलगजक्लओपणत्तो ॥ ३ ॥ इह धम्मकहा
भन्माण साहएट्टि । मविरह सहावोसयलह. हेउभ्या विसया विहरइतिजीवाणं से ही पम्प कोई इस तरह पाचरण करेंगे ये भी मुक्ति में भायेंगे ॥ ४ ॥ बहो मम्म् ! श्रमण भगवंत मावीर स्वामीने झानासूच के नया अध्ययनका यह अर्थ कहा. नवया हाताका अध्ययन संपूर्ण हुना॥१॥ पहार-जैसे वहीपा देवी महापापी थी वैसे है हम दर्शन में अविसि पहापापी, जैसे नामकी छा बालेकिन वे ही इसमें मुष की इच्छा वाले जीवो . जैसे वे नक्षिण दिशा कीपर गागा पुरुष को देखकर हरपाये और कम से परेशलगम है यहां मंमार दुःख मे परे हुवे धर्मकथा प्राप्त
रमे. मेसे जूत्रीपर गा वा पुरुषने देवी के दुःख देने का कारण, उमसे छुपाने बासाग यक्षका काती धर्म कथा मस्वकारको रंग साख के इन मत विषय से न निवास अविरत
• प्रकावाक-रामाहादुर लाला पुखदवसहायणीपात्रसादमा.
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