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चामर वालीजित्तंगीओ सेणिएएणरण्णासाई हत्थिक्खधंवरगएणं पिटुओं २ समणु गच्छमाणीओ चउरगिणीए सेणाए महया हयाणीएणं गयाणीएणं रहाणीएणं पायत्ताणीएणं सिवढीए सव्वज्जुईए जाव णिग्घोसणाइयरवेणं, रायगिहणयरं संघाडग तिय चउक्क बच्चर चउम्मुह महापहेसु आसित्तासित्तसुचिय संमजितोबलितं जाव सुगंधवरगंधि
वहिभय अवलोएमाणीओ णागरणेणं अभिणंदणिजमाओ, गुच्छलयारुक्ख गुम्ममाला उत्तरासन किया होवे, सब रुतु के सुगंधित पुष्पों की श्रेष्ट माला से मस्तक शोभित हुवा होवे, कृष्णागर के
आदि सुगंधिप्रधान धूप से लक्ष्मी समान वशवाली हावे. एसी शोभा युक्त होती हुई सेचानक नामक हस्ती रत्न पर आरुढ होकर कोरंट पुष्प की माला वाला छत्र धारण करती हुइ. चंद्र की क्रान्ति समान वैडूर्य रत्नोंवाला विमल दंड व शंख, मचकुंदफूल पानी के कण, व समुद्र मन्थन से नीकला हुवा अमत का पुंज समान श्वेत चार चामर बीजाती हुइ श्रेणिक राजा की साथ हाथी की पीठपर #अश्व व रथ,पायदल यों चारों प्रकार की चतुरंगिनी सेना आती होवे. यावन बहुत वार्दित्रोंके बडेरनि?पसे
राजगृह नगर के शृंगाटक, त्रिक, चौक, चच्चर; चतुर्मुख व राजमार्गमें सुगंदित पानीका छिटकावकर, विशेष
छिटकावकर, कटक, कचरा रहित बनाये हुवे होवे और उसे देखती हुइ नगरजनों प्रशंसा करते होवे उसे 10 सनतीहइ, बैंगनादिक के गुरुत, चम्मादिलताओं, सहकारादि वृक्षों,गुल्मवेली,नवगालती, इत्यादिक के समुहसे"
षष्टमोग हाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध <ages
448क्षिप्त (मेघकुमार ) का प्रथम अध्ययन 486
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