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श्री अमोलक ऋषिजी
भावार्थ
भूयाओ, कुंडल उज्जोभवियणणाओ रयणभूसिमंमीओ णासा णीसास वाय बीमत चक्खहर वण्णफरिससंजतं हयलालापेलवाइरेयं धवलकणय खचियत्तकम्मं आगासफलिह सरिसप्पमं अंसुयं पवर परिहियाओ दुगुलसुकुमाल उत्तरिज्जाओ सम्बोउय सुरभिकुसुम पवरमल्लसोभियसिराओ कालागुरुधूवधूवीयाओ सिरीसमाणसाओ, सेयणयगंधहत्थिरयणं दुरिढाओसमाणीओ सकोरंटमल्लदामेणंछत्तेणंधरिजमाणेणं चंदप्पभ
हरवेरुलिय विमल दंड संख कुंद दगस्य समय महिय फेणपुंज सणिकास चउ. उस माताने मान कीया होवे, कुल्ले किये होके, तीलमसादिक किये होवे. इस प्रकार उत्तम मनकर.. पांच में उत्तम नेपुर पहिने होवे, मणिमय मेखला कटि में होवे, हृदयः पर हर होवे, योग्य स्थान में हाथके कई पहिने हो, अंगुलियों के आभरण परिने होवे,अनेक प्रकार के बलिय चूडायों). हाथ में पहने हुने होवे, कान में कुंडलों पहिन कर मुख प्रकाशित कीया होवे, रत्न के आभूषणों से सुशोभित . पान कोया होवे स्वतः की नामिकाके वायु से उडे ऐसे बहुत बारिक वस्त्र पहिने हुवे होवे, जिसके अच्छा-1 दित से शरीर का विभाग दीख सके वैसे वस्त्र होवे नहीं, सुंदरवर्ण, कोमल स्पर्श होवे, घोडे की लाला से अधिक सुकोमल. श्वेत व सुवर्ण के तार से बनी हुइ किनारवाला और आकाश समान स्वच्छ भावाला वस्त्र पहने हुने होवे, इन्द्रकुल व दुकुल नामक वृक्ष की शालसे बने हुवे दुकूल वृक्ष विशेष का
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसंहायजी ज्वालाप्रसादनी ॥
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