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द्वणिमुयंतसु उक्वण्णेमु परहुय रुयरिभितसंकुलेमु उद्दाइंतरत्तइंदगोवय धोवत कारुण्ण विसविएमु ओणयतण मंडिएसु दद्दर पयपिएस संपियदरिय भमर महुकरि पहकर परिलियमतछप्पय कुमा सबलोल मधुर गुजंतदेसभाएसु उववणेमु परिब्भामिय चंदसूरगहगण पण? णक्खततारगपहे इंदाउहबद्ध चिंधपट्टसिं अंवरतले उड्डीण बलागपंति सोभंत मेह चंदकारंडग चक्कवाय कलहंस उस्सयकरे संपत्ते पाउसम्मि समयसि कलि व्हायाओ कयवलिकम्माओ कयकोलमंगलपायच्छित्साओ किंतेवर
पायपत्त णेउर मणिमेहल हाररइयउचिय कडग खड्डय विचित्तवर बलय थभिय. टाकुजघृक्ष, कदलिवृक्ष उन के पुष्पों की गंध से मुवासित उपचन होवें, कोकिलाके स्वर से पास का बनखंड सकुल आकुल होवे, इन्द्रगोप के करुणामय शब्दों जहां हो रहे हो, उन्नत अवनत तृण मंडित उपवनों हो रहे होवे, मेंडक प्रधान शब्द कर रहे होवे, मदोन्मत्त भ्रमर व भ्रमरियों के समुह एकत्रित हो पुष्पों के मकरन्द का आस्वादन कसे हुवे उस में लुब्धा बने हुवे मंजुल मधुर गुंजार शब्द करते होवे, उपवन में चंद्र, सूर्य, ग्रहगण की प्रभा का लुप्त हुवा होके और नक्षत्र व ताराकी प्रभा नष्ट हुइ।
होवे आकाश में इन्द्र धनुष्य का चिन्ह हुवा होवे, वगले आकाश में उड़ते हुवे होवे, चक्रवाक, कलहंस 17राजहंस वगैरह पक्षियों मानसरोवर तर्फ जाते हुवे होवे, वर्षा के ऐसे चिन्हों होते हो, उस समय में
ताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 42
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भावाथे
उन्क्षिप्त ( मेघकुमार ) का प्रथम अध्ययन
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