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अर्थ
4ष्टां ज्ञाता धर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध
स्नान किया, और वहां जो उत्पलादि कमलों थे उसे लेकर शेलग यक्ष का यज्ञायतन था वहां आये. उस को देखते ही प्रणाम किया, महामूल्पवाली पूजा अर्चना की, दोनों घुटने से नीचे पडकर सेवाब नमस्कार करते हुवे पर्युपासना करने लगे ।। ३१ ।। समय प्राप्त होने पर शेलंग यक्ष बोलने लगा कि किस को तारू किस को पालूं ? तब माकंदिय पुत्रों उठकर हाथ जोडकर बोलने लगे कि हम को तारो हम का पालो ।। ३२ । वह शलग यक्ष माकंदिय पुत्रों को बोलने लगा कि अहो देवानुप्रिय ! मेरी साथ लवण समुद्र में तुम जाते हो परंतु वह पापी चण्डा- रुद्रा क्षुद्रा व साहसिका देवी "आवेगी और तुम का
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रिणी तेणेव उवागच्छ २त्ता पोक्खाणि ओगाहेइ २चा जमलमजणं करेइ २ ता जाति तत्थ उप्पलाति जात्र गेव्हंति रत्ता जेणेव सेलगस्स अक्खस्स जबखायणे तेणेव उवागच्छ्इ २त्ता आलोए पणामं करेति २ महरिहं पुप्फञ्चणियं करोति२ जक्खप्पायंवडियाय सुस्सूसमाणा नर्मसमाणा जात्र पज्जुवासंति ॥ ३१ ॥ ततेनं से सेलए जक्खे आगतसमए पत्तसमए एवं वयासी-कं तारयामि ? के पालयामि ? ततेणं से मागंदियदारया उट्ठाए उट्ठेति करयल जावकद्दु एवं वयासी अम्हे तारयाहि अम्हे पालयाहि ॥ ३२ ॥ ततेणं से सेलए जक्खे ते मागंदिय दारए एवं क्यासी एवं खलु देवाणुप्पिया! तुभे मएसद्धिं लबणसमुद्दे
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4+ जिनरक्ष जिनपाल का नववा अध्ययन ११*
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