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अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिनी
"तारयामि, कपालयामि, ॥ तं गच्छहणं तुम्भे देवाणुप्पिया। पुरथिमिलं बणस. जेणेव । सेलगस्स जक्खस्स महरिहं पुप्फच्चणियं करेह जाणुप्पायवडिया पंजलिउडा। विणएणं पज्जुवासमाणा चिट्ठह ॥ जाहेणं से सेलए जक्खे आगतसमए
४३८ पत्तसमए- एवं वदेजा कं तारयामि कं । पालयामि, ताहे तुब्भे एवं' वदेह अम्हे तारयाहि, अम्हे पाल याहि ॥ सेलए जक्खे परं रयणहीवदेवयाए हत्थाओ साहत्थि निन्छारेज्जा, अन्नहा भे न याणामि इमेसि सरीरगाणं कामण्णे आवती मविस्सति ॥ ३० ॥ ततेणं ते मागदिय दारगा तस्स सूलाइयरस अंतिए एयमटुं सोचा । निसम्म सिग्धं घंड चवलं तुरियं चेइयं नेणेव पुरथिमिल्ले वणसंडे जेणेव पोक्खयक्ष की महा मूल्यवाली पूजा अर्चना करो. दोनों घूटने पृथ्वीपर रखकर दोनों हाथ जोडकर विनय । पूर्वक पर्युपासना करो. अंर जब शेलग यक्ष भावे और कहे कि किस को तारूं किस को पालं तब तुमः ।
ऐसा कहना कि हम को तारो हप को पालो. शेलग यक्ष रत्नदीपा देवी के हाथ से मुक्त करेगा अन्यथाई हैन मालूम तुम्हारा शरीर विपत्ति में आ जाये ॥३०॥ उस शूलीपर रहे दुवे पुरुष की पास से ऐसा सुनकर
शीघ्र, चपल व त्वरित वेग से पूर्व दिशा के वनखण्ड में दोनों माकंदियः पुत्रों गयः उस में अवगाहकर ।
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मर्थक-राजाबहादुर लाला मुखदरमहावजी ज्वालाममादजी.
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