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इमेसि सगरगाणं कामणे आवतिय भविस्सह ॥३८॥ ततेणे ते मार्गदियदारगा तरस सूलाइगरस पारमस्स अंतिए एयमढें सोचा निमम्म बलियतरं भीया जावसंजाय भया, मूलाइयं पुरिसं एवं व्यासी-कहणे देवाणुप्पिया ! अम्हं रयण देवयाए हत्यातो साहत्यि निच्छरेजामो ? ॥ २९ ॥ ततेणं से सूलाइए परमे ते मागंदिय परए एवं वयासी-एसणं देवाणुपिया ! पुरपिछमिल्ले वणसंडे मलगरस जक्खस्स जक्खापर्यणे सेलएणाम आसस्त्रधारी जक्खे परिवसति, ततेणं से सेलए जक्खे चाउमटू
मुट्ठि पुण्णमासिणी आगपसमए पत्चसमए महया २ सहगं एवं पयासी-कं शरीर को भी कमा कष्ट होगा ॥ २८ ॥ उस पुरुष की पास से ऐसा सुनकर वे पाकंदिय पुत्रों विशेष मन हुए और उसको पुछने लगे रिको देव नुमेय ! हम इस सपा देवी के हाथ से केस
छूट ॥ २९ ॥ नब रो दुवे पुरुषले उनको कहा कि मो देवतु य ! पूर्व दिशा के विखण्ड में शेरगं यक्ष का पक्ष यान है. इसमें अपरूपाला एक पक्ष रहना. वह शोलम वक्ष:
चतुर्दशी, अधी, अमावास्तारपूर्णमा इन चार तपित्रों में माता है और परशद से ऐसा Viatकि बिस को कोई किस को पाले. इस से महा देवानुप्रिय ! पूर्व दिशा के बलन में सेना
पटांडावार्यकथाका प्रथम श्रुनस्कंध 4.
जिनरसाधनपाल का नववा अध्ययन
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