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________________ 14 देवपाए आयपणे महल देवाणुपिया ! जद्दीवातो र भारहामो पासाओ : कागदिय आसिवाणियए विपुलं पणियभंडगमायाए पोयवहणेणं लवणसमुई उयाए, वतेणं मई पोय वहणवित्तीए निकबहु भंडसार एगफलगखंडं माएमि. ततेणं गई बुज्झमाणे १ रयणदीव तेणं संवुढो ॥२७॥ ततेणं सा रणदीव देवयाए ममं पासंति १ वा ममं ओ हणा गेण्हति, मए सहिं बिउलाति भोग भोगाई भुजमाणी विहरतिाततेणं सा रयण दी देवया अन्नयाकयाइ महालहुगांस भवराहसि परिकु. विया समाणी ममं एषारूवं भावतियं पात्रेति. सं न गजहणं देवाणुप्पिया ! तुम्भेषि पर्व देशानुमिष ! पा रहीपा नामक देवी का स्थान है. बही देवानुमेय ! आम्द्वीप के मरनेत्रl काकंदी मगरी कामका व्यापारीहू. बहुत माया वह मंडोपकरण ग्रहण कर नहानों से लबण समुद्र का प्रबंधन करते हमारा नाम तूट गया और सब सामान ब गया. एक पटिया पकर कर तीरवा एगा.इस स्लप में पाया ॥ २७ ॥ उस समय इस दीपा देवी मुझे रखकर इस के गाई नौर। :मेरी साप विपुल भोग भोगनी ई विचरने लगी. एकदा किचिन्मा. गेटा अपराध में बाबाने से । पित पाकर इस देरीने मुझे इस प्रकार की बापति में डाला, महो देवानु मेप ! न पाहम हमारे । कामना मुनि श्रीका . namamalininmmmcindimamiammamminenes -समावहादुर डाडा सदसहावी-बावसादन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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