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मष्टाङ्ग जाताधर्म था का प्रथम श्रुतस्कख 4
2.. अभिभूया समाणा सएहिं २ उत्तरिजे हैं, आसाति पिहेति, २,. जेणेव दकिवणिो
'वर्णसंडे. तेणेव उवागया ॥ २६ ॥ तत्थण मह एगं आयतणं पासंति अट्रियसासि
सतसंकुलं भीम दरिसणिजे एक चणं तस्थ सूलाइयं पुरिसं. कलुणाति कहाति विस्स. १. गति कुध्वमाणं. पासति २ ता. भोया जाव- संजातभया; जेणेव से सलातिए पुरिसे ।।
तेणेव उवागच्छई. २ चा ते मलाइयं पुरिस एवं वयासी ऐसणं देवाणुप्पिंया!करस आयतणं तुमंचणं के? कउंग इह हत्यमागए,? केण वा इमेया रूवे आवर्ति पाविएसि ? ॥ ततेणं
ते सूलातिते पुरिसे मागंदिय दारगे - एवं क्यास्नी--एमणे देवाणुपिया ! 'रयणदीव अपने २ मख को उत्तगमन मे ढक दिगा और दक्षिण के बनखण्ड में आये ॥ २६ ॥ वहां एक बड़ा वधान देखा: वह हड्डियों की गशि से परिपूर्ण व भयंकर देखावधाला था. वहां शूलिपर रहाई
एक पुरुष को करुणाजनक, कष्टकारी व विरूप शब्द करता हुवा देखकर वे दोनों भाई डरे गावन भयभीत हुए. और मह शूलियर चढ़ा हुआ पुरुष था उस की पाम आये. और यूलिपर चढाहुवा पुरुष को कहने लगे कि अहो देवानुप्रिय ! यह किम का वधस्थान है, तू कौन है और यहां कहां से भाया है, और इस विपत्ति में कैथे पडा है? तब उस शूलोपर रहे हुये पुरुषने सर माकंदिय पुत्रों को कहा, अहो
मित्ररक्ष जिनपाल कानबा...अध्ययन
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