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सूत्र
अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक
क
...दिय दारा त्यसबा जब जेणेव पञ्चत्थिमिले वणसंडे तेणेव उवागच्छद्र जाब विहरति ॥ २ ॥ ततेणं ते मार्गदियदारंगा तत्थवि सतिंत्रा जाव अलभमाणा अण्णमण्णं एवं वयामी एवं खलु अम्हे रयणदवि देवया एवं वयासी एवं खलु अम्हं देवाणुपिया ! सक्कस्म वयणसंदसेणं सुट्टिएणं लवणाहिवइणा जाव माणं तुम्भे सरीरस्स वावती भविस्सति; तं भवियन्वं एत्थ कारणेणं तं सेयं खलु अम्हं दक्खिपिल्लं श्रणसंड गमितर तिकट्टु, अण्णमपणस्स एयमटुं पडिसुणेइ २ जेणेव दक्खिजिले वणसड तेणेव पहारस्थ गमणाते सओणं गंधेणिजाए से जहा नामए अहिमडेतिया जाब अतिराएचव || सतेणं ते मांगदियदारगा तेणं असुभेणं गंधणं होने से पश्चिम दिशा के वनखण्ड में गये ॥ २६ ॥ पश्चिम दिशा में चित्त व्याकुल होने से परस्पर कहने लगे कि अपन को रत्नद्वीपा नाम की देवी कहती गई है कि मैं शक्रेन्द्र के स्थापित किये हुत्रे लवण समुद्रके अधिपति देव से लवण समुद्र को इक्कीस वक्त स्वच्छ करने का नियुक्त हुई हूं यावत् दक्षिण दिशा में अपन को बाधा पीडा डोबे एसा कहा है; इस से इस में कुछ कारण होना चाहिये. अपन को दक्षिण के बनखण्ड में जाना चाहिये. ऐसा कहकर दोनों हो दक्षिण दिशा के बनखण्ड में जाने लगे. वहां सर्प के मुडदे यावत् अनिष्टतर दुर्गंध नीकली. ऐसी दुर्गंध सहन नहीं हो सकने से दोनों मार्कदियं पुत्रोंने}
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(काशक - राजा वहादुर लाला सुखदेव महायजी ज्वालाप्रसादजी
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