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1. तते ते मागंदिय दारया तो मुहुरंतरस्स पासायांवाईसए सहवाति वा विश
अलभमाणा अण्णमण्णं एवं क्यासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! रयणदीव देवया अम्हे एवं क्यामी एवं खलु अहं समायणसंदेसेण सुट्टिएणं लवणाहिवइणा जाव वावत्ती भविसति- सेयं खलु अहं देवाणुपिया ! पुरथिमिजं वणस गमित्तए, अन्नमन्नस्स पडिमुणीत पाडसुणता, जेणेत्र पुराम्छिामिल्ले वणसं तेणेव उवागन्छ। २ ना तत्यणं पावीसुय जाव भालीघरएमय जाव अभिरममाणा विहरंति ॥ ततेणं ते मागदियदारगा तस्यपि संर्तिवा जाव अलभमाणा जेणेव उत्तरिखं वसंड
तणेष उवागन्छति, तत्थर्ण बाबीय जाव आलाघरएमए विहरति ॥ ततेग से मागं. JE वा नई पा देवी गयी थोड़ी देर बाद वे पाबंदिय पुत्रों प्रासादावतंसक पर मेरे व्याकुल होकर
न रखने से परहार बोलने सगे कि बो देव नुप्रय ! रुद्वीपा देवी ने अपन को ऐसा कहा था किशन से स्थापित किये से सण समद्र के अधिपति से यावत् प्रवृत्तिकाली होउंगा. इस से हो देवानुनिय ! अपन को पूर्व दिशा के बनखण्ड में जाना चाहिये. इस रा दोनों ने इस बात का स्वीकार किया और पूर्व दिशा के बनखण्ड में गये. वहां वावड़ियों यावत् बालिगृहों में विचरने लगे. वहां पर चिच व्याकुछ होने से पचर दिशा के बनखण्ड में यावत् विचरने लगे. वहाँ पर भी चित्त म्याकुल।
पांडताधकथा का
10 मिनरक्ष जिनपाका नववा अध्यपन 48
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