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2. पुराण मंजणगंज निभा रत्तच्छे जमलजयलचंचलचक्लचलतमीहे ।
परणियल भए उडफडकुडलज क्लिक्खडायड फडाडो करणदिवं लोहागार धम्ममाम धमधमला घसा अणागलिए चंडतिनगमा समुह : तरि चबलं धभंबे दिद्रिविम सो परिवमनि । म सम्ले सगरगरा अवती भविस्संद ॥ ते. मागविय वारए देच ितच्चपि एक्वाति २ ता वेउनिय स्मुग्घ एण समोहणति २, .
तीउछिट्टाए लवणसमुई तिसत्तखु वो अणुरिय: पयसायरि होला ॥ २४ ॥ भईवाला धागविप वाला महाविप वाला, अतिकाय वाला, महाकाय वाला, अभिने सपना दुभा कोयला
पा, म से (कारल ) सोनार का सोना तपाने का सामन जैसा काला विक व रोपपूर्ण नमन वाला है। ना के समुह जैमा रक्त आंखो वारा, बैनल घाल २ चलती हुई । दो निंगा वाला, पृथ्वी पर गिरती हखी की वैषि ममार, उसट, स्फुट कुटेल क विकर फण का ऑटो करने में दक्ष, लोहमारशाला पंधपती दुई समय समान न करने वाला, प्रचण्ड तीव्र गेपणाली व कुत्ती जैसे सपल व सरित न करनेमाला एक विष रहना है. इससे वहां माने में
तुपारे शरीर में बाधा हाचे. इस तरह मादिय पुत्रों को दो तीन बार पैमा करकर केयः समुदान की.. 17 को उत्कृष्ट दीव्य देवगति से लाण समुद्र को इसक पर्यटन करने को प्रवृल हुई ॥ २४ ॥ अब ।
अनुगदक ब्रह्मचारीमान श्री अलपित्री
पक-राजवहादुर लामा मन्दसायजाज्वालाममावलि
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