________________
4**
bemi Kisce
निताधकथा का प्रथा श्रवन्ध -4
'मउडो, ऊमियतिलगाउलालाबनी वसंत ऊऊ नावती माहीमो ॥ ॥ तत्या पाडल मिर्गम मलिलो, मल्लिएवातीतयधलंगले, झीपलममिनिलमय चरिओ, गिम्ह ऊउ सागरोसाहीणो ॥ २ ॥ तर णं बहु । जव बिहरेजा ॥ २३ ॥ जइ तुमे देशणु पिया ! त्यो उनिगा उपुया भवेजाह ततो तुम्भ जेगेव पासायवडेसए तेणेच उवागन्छेजइ ममडिव लेनाणा चिट्टेबह ॥ माणं तुम्भ दक्खिणिलं वणमडं गच्छे बाह; तत्थणं महं एगे उगविने चंडसेि महा घोरविले ...
महाविने, अइकाए महाकाए जहा तेनिगागो ममिमीहम् मूसःकालर नगविमरोस छत्र वाला पति का संना मदेव वर्तती है. या संत काको रामा की जामा की है। • ॥ 12 लव शिरप कुमुप रूपी बाला मल्ल र नामानाकर पानी की बेर बाला, शीतल मुगधेन वाय रूप भ्रष्ण करने वाले मगर पसारेमला में घर का प्रयापती. या गोष ऋतु मे मागर की अपपा दी है. अहो देवाणुषों पर यावत् सुप रहना ॥ २३ ॥ भो वाणु प्रिय ! यदि तुप को यहां पर भी उवा हो तो पारासारतमा पर भाकर सना और मेरी मार्ग समीक्षा करना. परंतु तु. दहिग देशा के बाखा में माना नहीं सके बरिषः बाला, चंडी
s
aniwimmmmmmmmmmmaniamommmmmmmmmmmon
pie i
Eteta
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org