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री मुनिश्री अमोलक ऋषिनी+ + अनुवादक बालब्रह्मचारी
पउमनलिणसिंगो, सारसचकायरसितधेसो सरतोगोवईमया साहीणो ॥ १॥ तत्थ्य सिय कुंद धवल ज हो, कुमुमिय लाइव गसड मंडलतलो, तुसार दगधार पीवरकरो, हमत ऊऊ ससीसया साहीणो ॥ २१ ॥ तत्थणं तब्भ दवाणुप्पिया ! जाव विहरजाह ॥ २२ ॥ जण तत्थर्व उच्चम्ग जाव रस्सय.या भवजाह तोणं तम्भे अव.रिल्ल वणसंड गछज्ज ह, तथणं दो ऊऊ सगा साहीणा भवति तजहावसंतय गिम्हय (गाथा ) तत्थी सहकारचारुहारो; किंतुयकगियार सोग.. रमचक्राक के धोष सपान शब्द करने वाल रूप काल मदेव ता.x॥१॥षेत्र कुंद बराति क पृष,रू । ज्योत्र । वाठा, कुसुमित लोध्र वा वरवण्ड रूप मंडल नल बाला, हिमाय पानी की ध। रूप जाड किरण बाला, शाला काल सौवर्तता॥२ ॥ अहो देवानपिय! नुवां जाकर सनः ॥ २७ ॥ हपर भी तुमको उद्वग्ना, उस्मता, भय होतो तुप पश्चिप के वनखण्ड में नाना वहां पर दो ऋतु साव रहती जिनक-नाम-वसंत ऋतु (चत्र व वैशाख) और ग्रंप ऋतु (ज. व अशट) उन का वर्ण गाथा से कहते हैं. महार (अ.म्र वृक्ष) के कोर रूप मनोहर हराल, वृित पुष्प व अशोक वृक्ष के रू। मुकुटबालो, ऊंचा हिलक वृक्षक पुष व करवृक्ष के पुष्प रूप
x शरद तुऋ को बैल की उपमा दी है. यहां हेअंत काल को शाशीकी उपमा दी है.
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'प्रकाशक राजावहादुर लामामुखदेवमहायजी ज्वाला भपादनी .
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