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________________ | दिट्ठी बराह जणकुलकलगा. घुम्ममाणीमित्र, वीचीपहारमयलालिया गलियलंबणा 'विव गगणतलातो रोयमाणीविव- सलीलगंठी विप्परइमाण धोरंसु पाएहि: णवबहुउवरयः भत्तया विलवमाणीविव, परचक्करायाभि रंगहिया परमः महाभयाभिडय! मह पुरवरी उझायमाणी विव कवडत्थोमणपउगजुत्ताजोगपरिमाझ्याणि. संसमाणीवित्र, महाकतार विजिग्गय परिस्संता परिणयच्या अम्मया सोयमाणीविव, तवचरण , खीण परिभागावचवणंकालदेववरबहुसँचुण्णियकट्ठकुवरा भग्गमेढिमोडिय . संहरसमाला : दौडन लमी. उत्तम कुल की कन्या को दृष्ट आचरण करती हुई उन के कोई वडिलं - पुरुषो देखलेवे तो Eजैम वह बंदना से घुरघुराट करनी है मे ही यह नावा घुरघुर शब्द करने लगी, जैसे किसी स्त्री को चाबुक के प्रहर मारन से वह घुरघुराट शब्द करती है वैसे ही यह नावा घुरघुराट शब्द करने लगी. आकाश में से अश्रु जैसे पानी के कण गिरने से लावा रूदन करती होचे पैसी दीखती है.. नव परिणत धू जम के मर्ता त्याग देने से जैसे कलयांत करती है. वैसे ही कलांन करने जैसी होनी लगी, जैम -1 परचक्री प्रबल नृपति से काम पाई हुई सेना में बहन कोलाहल हेता है वैसे ही नावा में कोलाहल शब्द होने लगा. कंचित ना स्थिर होती है तब उस का दृष्य जैमा होता है। *उस का वर्णन करते हैं जैसे किसी का वंचित करने के लिये कपट रूप योमी बनकर ध्यानस्थ बैठा मग दीर्य निक स दालता है वैसे ही उस नावा में बैठे हुने लोगों के दीर्घ मिश्च स से वा नावा ही दीर्घ है। अनुवादक-बालमनचारी मुनि श्री अमोलक प्रापजी - पकाधक राजाबहादुर लालाखदवसहायजा ज्वालामहादजी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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