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________________ सूत्र - पायधर्मकथा का प्रथम कक्ष 43 मंचालिजमाथी २ संखेभजमाणी २ सलिलतिक्खवेगेहिं भणियट्टिजमाणी २ कोहिमकर लाइए विवर्ति दूसए तथेत्र २ उवयमाणी २ उप्पयमाणवित्र घरणियलाओ सिद्धविजाहर कक्षा उपयमाणचित्र गगनतलाओ भट्टविजा विबाहर कन्नगः, विपलायमाणवित्र महागरुल वेगविशामियाभूयगवर कसा धावमानी चित्र महाजण रसियस वितत्या ठ णभट्ठा 'आसकीसोरी निगुंजमाणीचित्र, गुरुजनविदेशी में गमन करने लगी, हुब्ध हुई, पानी के क्षण वेग मेन्ध होने से नहीं रूक सकती थी, जैसे पृथ्वी पर हाथ में से फेंका हुआ गेंद ऊंचे उछलकर पडता है पैसे ही पहनावा कर पानी में पढने लगी, वहां डी किविम्यात्र में पानी के अर मे चढकर उपर जाती थी, पानी का कोट हटने से नींव आतों या पृथ्वी के अश्रय च ध्यास करने वाली विद्याधर की कन्या परिपूर्ण विद्या नहीं होने से उपर जाकर नीचे जाती है डी नावा उपर जाकर नीचे जाने लगी. जैसे दिया से भ्रष्ट हुई। विद्याधर कन्या विद्या का विस्मरण होने मे इबर उधर परिभ्रमण करती है देने ही यह न वा इधर उधर परभ्रमण करने लगी, गरुड पक्षी के परख के इरादे से कामित नाम कन्या अपने प्राण की कवानी करती है वैसे ही यह गाना करने लगी. जैसे अपने स्थान (अयशाला में मे फ्रांकाल से अकुत व्याकुल बनकर अक दिशा में दोस्ती है हुई घोडी मनुष्य ही यह नाबा वैसे Jain Education International For Personal & Private Use Only 44+ जिनरत जिनवाल का नववा अध्यनन Yee www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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