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अर्थ
हांद्रताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध
सुलाइय चंक परिमामा फ
आमग
लडनडित कुटुंन संधिविमलंत, _लोहकालिया सवियंभिया परिसादिपरज्जु पितरंत सव्वगता अगमणोरहे। चितिज माणी, गुहर्त हाराकद करणार नात्रियवाणियगजा, कम्मकार विलविया, नाणाविहरणाय पण्ण संपुझा
विश्वास डालती हुई दीखती है. जैसे वृद्ध पुरुष दोघन करते अन से निश्वास डालती है अथवा जैसे बहुत पुत्र पुत्रियों को जन्म देनेवाली माता के गात्र वृद्ध अवस्था से शिथिल होने से किसी प्रकार का कार्य करते हुए निःषःस डालती है वैसे ही इस मावा में रहे हुवे लोगों विश्वास डाल रहे हैं. और भी जैने संयम के क उसे बनाना देवता के अपना आयष्य मंत्र व स्थिति क्षीण होने से उम्र के चक्षण काल में उस की खा ( देवांगना ) चिंताग्रस्त करती है वैसे ही वह नाक शेष कर रहीं होने देसी दीखनी है, ऐसी नाडा के कटकर चूर्णीभू होगये कूपस्तंभ बगैर टूट गये, उस नात्रा की मेडियो
होगई,
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की
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नावा सूची पर चडा हुन, या पर्वनर से पड़ा हुआ
रहित होता है बेनेही
बहित हुई, समुद्र "खरे तीक्ष्ण पाहाडों में नाथा के महार से छेदन हुए मनुष्यों के बृद उस से पड़ने से जैसे पानी में पडे, वैसे ही तडा तडतडत करते हुए पये से लगे हुए लीह कीले से हट गई, समुद्रानी में भित्र बिना केब्बी दोरियों सह सक
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कम जिंनरक्ष जिनपाल का नववा अध्ययन
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