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________________ ४१४ सिद एवं परिनिन्वाण महिमा भाणियब्वा, जहा जंबुद्दीव पन्नत्तीए नंदीसरे, अहिय महिमातो. पडिगयातो ॥ १७३ एवं खलु जंबु ! समजेणं भगवया महावीरणे जाव संपत्तेणं अटुमस्स जायज्झयणस्त अयम? पण्णते ॥ तिबेमि ॥ मजीणं गायझयणंअट्टमं सम्मत्तं ॥ ८ ॥ उग्गतब संयमवओपगिट्ठ फल साहगरम विजयस्स धम्मविसएदि महमावि होइ माया अणस्थाय ॥ ..॥ जह मालस्स महाबल भवंमि तित्वयरणामबंधेवि तब विमए थाब माया जाया जुक्यात हउत्ति॥ २ ॥अट्रमें नायज्झयणं सम्मत्तं ॥ . . - अनुवादक-पालनमचारी मुनि श्रीमान पिजो - मानाबाद लाला भुखहब पहायजी ज्याप्रमाानी - - - अठाइ मोत्पब करके पीछे गये. ।। १७२ ॥ अहो न ! श्रमण भगवान महावीरसामी ने बाता कथा के आठवा अध्ययन का यह अर्थ कहा. पर मल्ली नामका ज्ञाता धर्म कथा का भाठम अध्ययम मंपूर्ण दुना. ॥८॥ उपसंहार-उग्रनप, संयम र व्रत को मोक्ष के लिये साधन करने वाले साधुओं को धर्म में किचिमात्र माया भी अनर्थ रागनी ॥१॥ जैसे महाबल के भव में मल्लीनाय का 15 तीर्थकर नाप कर्म का बंध होने पर भी माया से बना पात्र हुवा. या आठमा अध्ययन संपूर्ण हुवा. ॥८॥ : : :: : Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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