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+ षष्टांडवानाधर्मकथा का प्रथम श्रमस्कन्ध 122
पाए नेणव उवागग्छ। २त्ता संमेय सेलसिहरे पाउगमण पडिवन्ने ॥१७०॥ मल्लीणं आहा एगं वाससयं अगारवास मज्झे पणपण्णं वास सहस्माई वाममयं ऊ गाति के बलि परियागं पाउणेना, पणपण्णं वास सहस्साति सघाउयं पालइत्ता ॥ १७१ ॥ जेमे गिम्हाणं पढमे मासे देोच्च पक्खे चित्तसुद्धे तरणं चनसुद्वरस चउत्थी परखणं भरणी नक्खतणं अद्वरत्तकाल समयंसि पहिं अजिया सएहिं अभितस्यिाए परिमाते, पंचहि अणगार सएहिं वाहिरिया परिसाए,
मासिएणं भत्तगं अगणएणं वग्धारिय पाणी खींगे वेयणिजे आउए नाम गाए की पाम अ.ये. वहां स्वयपेन चडकर पादोगमन अ शन किया. ॥ १७ ॥ मल्लीनाथ अरिहंत एकसो वर्ष संसार में से, पंचावन हजार वर्ष में सो वर्ष कम की केवल पर्याय और सब पीलकर पञ्चावन हजार वर्ष संयम पाला, ॥ १७१ । ग्रीष्म ऋतु के प्रथम मास के दूसरे पक्ष में चैत्र शुदी ४ को भरणी नक्षत्र में अब सा समयमें आभ्यंतर परिषदाके पांचसो आर्यामी, बाहिरकी परिषदा के पांचसो साधु सहित एक मास, पर्यंत भक्तपान रहित हायपांव का हलन चलन सिवाय वेदनीय, आयुष्य, नाम व गोत्रको क्षगकर सीझे यावत् मुक्ति पधारे. यो सब निर्वाण अधिकार जम्न द्वाप प्रज्ञप्ति से मानना. यारत् नंदीश्वर वैप में
128श्री मल्लीनाथजी का आठवा अध्ययन ११
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