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अरहओ-छसया चउद्दस पुत्रीणं वीससया ओहिणाणीप्यं, वत्तारसया कवलणाणीणं, पणतीससया डावयाणं, असया मणपजवणाणीणं, चउद्दमसया व ईणं वीसंसया अणुत्तगंवातीणं ॥ १६८ ॥ मल्लिस्सणं अग्हओदुविहा अंतकरभूमी मी होत्था तंजहा-जुगतकर भूमी परियायतकर भूमी जाव वीमांतमाओं पुरिस जुगाओ जुयंतकर भूमी, दुवास परियाए अंतिमकामी ॥ १६९ ॥ मल्लीणं अरहा पपणबीसं धणणि उट्ठे उच्चत्तेणं, वन्नेगं पियंगु समे समचउरस संठाण
संठिए बजरिसहनाराय संघयणे, मझदे से सुह सुहेणं विहरित्ता, जेणेव सम्मय मर्थE केवल ज्ञानी, पेंतीम मो वैकेय लब्धि के धारक, आठ मो पनापर्यत्र ज्ञानी, गैदमो बादी विजय और
दो हजार अनुत्तर विमान में उत्म होने वाले थे ॥ १६८ ॥ पलनाथ अरिहंत को दो प्रकार की अंत कृत भूपि हुई. जिन के नाम. युग तर भूपि सो संसार का अंत करनेवाली और २ पर्यायांतर पो गुरु शिष्य व प्रशिष्य की जिम में वीस पुरुषों युगामर भमि वाले पाट मुक्ति जाने वाले हुए. और पल्लं नाथ अरिहंत मुक्त गये अनंतर दो वर्ष पछि मुक्ति में जाना शरू हुना. ॥ १६९ ॥ मल्लानाथ अरिहंत के शरीर
की अवगाहना पच्चीम धनुष्य की थी, उनके शरीर का वर्ण पियंग ममानस था. उन का संस्थान | समचतुत्र था, संधयन बज्र ऋषभ नाराव था, और मध्य देश में मुख पूर्वक विचर कर समंत शिखर पर्वत
मुनि श्री अमोलक ऋषिजी ।
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. पावागजाबहादर लालासुबहवमहायजी मालाप्रमादज'
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