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4. अनुवादक-वारब्रह्मवा मुनि श्री अपोलो
सुगंति अट्टाहियं महिमा नंदीसरे जाव जामेवदिसि पाउम्भूया तामेवदिसि पडिगया। कुंभएवि जिगच्छह ॥ १६२ ॥ ततेणं ते जियसत्तू पामोरखा छप्पियरायाणो जेटपके रजे दुवित्ता, पुरिमसहस्म वाहिणतो दुरूढा सबिट्टीए जंणव मल्ली अरहा साव पज्जवासंति ॥१६३॥ ततेणं मल्ली अग्हा तीमे महति महालियाए कुभस्स रपणे तेति च जियसत्त पामोक्ख णं धम्मच परिकहति ॥ परिसा जामेदिसि पाउम्भया त मवादिमि पडिगया ॥१६४॥ कुंभएरायाम गांवासए जाए पडिगए।पभावतिया समको
वासया जाया पड़िगया ॥१६५॥ ततेणं जियसत्तू पामोक्खा छप्पिरायाणोधम्म सोबा श्रण की, महा नंदीश्वर द्वीप में भठाइ महोत्सत किया गात् अपने • स्थान प गो. कुंभ राना भी अपने स्थान ' गये. ॥ १६ ॥ जितशत्रु प्रमुख जी राजा जष्ठ पुत्र कोर में स्थापन करके सरस पुरुष पहनी शीविका रह कर सबकशि महित श्रीपल्ली नाय आरहंत की पास आय यावत् पर्यपासना करने लगे ॥ १६३ ॥ मल्लीनाव बहिन न उम माती पपदा में कुंभराजा को वजिशनु प्रमुख राजाओं को धर्म करा, परिषदा जिम दिशा से बाई थी वहां पंछी गह ॥ १६४: कुंभगमा श्रमणोपामक हुए और अपने स्थान गय प्रमालीवाश्रम पासिकाइ ॥ १६५ । मितपत्रु प्रमुख की रामानों पर्म सुन कर बोले मो भगवन् ! या का
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