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सूत्र
अर्थ
*पष्ट ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम स्कंध 4+
त्ता
चैत्र || १ | तणं ते भवइ वाणमंतर जोइसिय त्रेमार्णिय लि अरहरलक्खिमण महिमं करैति, जेणेव नंदीसरे अट्ठाहियं करेइ २ पडिगया ॥ १५९ ॥ ततेनं मल्ली अरहा जंचेत्र दिवमं पव्वतिते, तस्संत्र दिवसरस वावरण्काल समयंसि, असोगवरपायवस्त अहे पुढत्रिसिला पट्टयंसि सुहासण वरगयरस सुहेणं परिणानेणं पसरथोहि अज्झत्रसाणेहिं, पंसत्याहि लेसाहिं, तयावरण कम्मरयत्रिकरण करं अपुन्त्रकरणं अणुपविट्ठस्स अनंते जाव केवलरणा दंसणे • समुप्पण्णे || तेणं कालेणं तेणं समएणं सव्वाणं देवाणं आसणातिं चलंति समोसदा
वणव्यंतर, ज्योतिषी व वैमानिक देवोंने मल्ली अरिहंत के दीक्षा महोत्सव का महिमा किया, वहां मे नंदीश्वर द्वीप में अढाइ महोत्सव करके पीछे गये ॥ १०१ ॥ ल्ली अरिहंतने जिस दिन दीक्षा-ली उम दिन के पीछे के भग में अशोक- पादप नीचे पृथ्वी शिलापट्ट पर सुखासन पर
शुभ परिणाम में
प्रशस्त मात्र प्रशस्न लेइया सहित सदावरणीय कर्ष रज का त्रिकरण करने वाला अपूर्व करण में परश करने अनंत यावत् केवल ज्ञान केवल दर्शन उत्पन्न हुआ. ।। १४० ॥ उस काल उ पूनमच.. मी कि देव के आसेन बलायमान हुए.- क्षेत्र व आये
रेशन:
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+++ श्री मल्लीनाथजी का आठवा अध्ययन
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