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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिमी
चगं. मलिस्स अरह भो माणुरसधम्माओ उत्तरिए मणपज्जव नाणे समुप्पने ॥१५॥ मल्लीणं आहा जने हेमंताणं दोचपास चउत्थंरक्ख पोससुद्धं तस्सगं पोस सुदस्स एकारसी पखणं पुवाहकाल समयसि अट्टमेणं भत्तणं अपाणएणं आरसणीहिं णक्खतणं जोगमुवागएणं तिहिं इत्थिरएहिं अभितारय ए परिसाए तिहिं पुरिसमएहिं बाहिरियाए परिसाएसहि मुंडभवित्त पवातए ॥ ५८ ॥ मल्लि अरहं इमे अद्वनायकुमारा अणुपवयसि तंजहा-१ गंदेय, २ गादमित्तेय,
३ सुमित्त, ४ बलामेत्त, ५ भाणुमीत्तेय, ६ अमरवई, ७ अमरसेण, ८ महसणे अरिहंत सामायिक चारित्र अंगीकार किया उस समय उन को मनुष्य लोक के प्रमाण विपुल मति मन पर्यत्र ज्ञान उत्पन्न हुम ।। १५७ ॥ मल्ली अरिहंतने हेमंत ऋतु के दूमर माम में, चतुर्थ पत्र में अर्थत् पौष शु११ को दिन के पूर्वी भाग में च उनिहार अष्टम भक्त (तेल) के तर सहित, अश्विनी नक्षत्र के योग्य से तर परिषःकी तीन सो स्त्रियों व बाहिर की परिषा के सीन सो पुरुषों की साथ मुंडित बना र प्रवत हुए॥१५८॥ मल्ली अरिहंत की माथ आठ कुपार पत्र जमा हुए जिन के नाम-१ नंद,२ नंद. मित्र, ३ मुमित्र, ४ बलमित्र, ५ भानु मत्र, ६ अमरपति,७ अमरसेन, और ८ महाशेन. तत्पश्च त् भवनपात
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसाद को .
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