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सहस्संबवणे उजाणे, जेणेव आसोगवरपायवे तेणेव उवाग छइ २ ता, सीयाओ पचोरुहति २ चा आभरणालंकार पभावती पडिच्छह ॥ १५२ ॥ ततेणं मल्लीअरहा। सयमंत्र पंचमुट्रियं लोयं करेंति२॥१५३॥ ततेणं सके दविंद देवराया मल्लिस्स अरहओ केसे पडिच्छइ २ ता खीरोदग समुद्दे साहरेइ ॥१५४॥ ततणं तेमल्ली अरहा गमो. त्थुणं सिद्धाणं तिकटु, सामातियं चरित्तं पडिवजति ॥ १५५ ॥ समयंचणं मल्ली. अरहा चरित्तं पडिवजति, तं समयंचणं देवाणु माणुसाणय णिग्घोसे तुडिय निगाए गीत वातिय पडिय, णिग्घोसेय सकरमधयणं संदसेणं निलुक्केयावि
होत्था ॥ १५६ ॥ जप्तमयंचणं मल्ली अरहा सामातिय चरित्तं पडिवन तं समय फारते थे ॥१५१॥ तब मल्ली अरिहंत सहस्त्र वन उद्यान में अशोक पादप (वृक्ष) पास जाकर शिविका से नीचे उतरे, आभरण अलंकार वगैरह सब प्रभावती देवी ने लिया ॥ १५२ ॥ तत्पश्चात् मल्ली अरिहनने
स्वयमेत पंच मुष्टि का लोच किया ॥ १४३ ॥ शक्र देवेन्द्रने मल्ली अरिहंत के केश को क्षीरोदधि समुद्र में 2 ठ,ये ॥ २५४ ॥ मल्ली अरिहंतने सिद्ध को नमस्कार करके सामायिक चारित्र अंगीकार किया ॥१५॥ Tiनन समय ल अरिहंतने सामायिक चारित्र अंगीकार किया उससमय शक्रेन्द्र के आदेशसे देव मनुष्य के
शब्दों, वादियों का शब्द, गीत, गान आदि की प्रतिध्वनि मंत्र लुप्त होगई ।। १५६ ॥ मिस समय मल्ली
पांगताधमर्कथा का प्रथम स्कन्ध 48
श्री मल्लीनाथजी का आठवा अध्ययन 488
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