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२१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋापनी
॥ ३१ ॥ तएणं धारिणीदेवी सणियस्सरण्णो अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्महढ जाव हियया तं सुमिणं सम्म पडिच्छइ २ जेणेव वासघर तेणेव उव गच्छइ २ ण्हया कयवलि. कम्मा जाब विपुलाई विहरइ ॥३२॥ तएणं तीसे धारिशीदेवीए दोसुमासेसुविइक्कतेसु तइयमासे वहमाणे,तस्सगन्भस्स दोहलकाल समयंसि अयमेया रूवे अकालमेहेसु दोहले पाउन्भवित्था- धण्णाउणं तओ अम्मयाओ, संपुण्णाओणं ताओ अम्मयाओ, कयत्था
ओणं ताओ, कयपुण्ण ओणंताओ, कयलक्खणाओ कयविहवाओ, सुलडेतोसिं माणुस्सए जम्मजीवियफलेताओणं मेहेसु अब्भुगएस अब्भुजएस अब्भुटिएस, सगजि
एसु, सविज्जएसु, सफुसिएसु, सथणिएसु, धंतधौतरुप्पपट्ट अंक संख चंद कुंद सालि#दृष्ट तुष्ट यावत् आनंदि हुई. उस स्वप्न का अर्थ सम्यक प्रकार से ग्रहण कीया. फीर अपने निवास है
गृह में आकर वहां स्नान कीया यावन् विचरने लगी ॥ ३२ ॥ अब धारणी देवी को गर्भ के दो मास हुने.. पीछे तीसरे मास में दोहल इच्छा उत्तम हआ, ऐसा अकाल मेघ का दाहला उत्पन्न दुवा कि, उस पत्र की ई. माताको धन्य है. वह परिपूर्ण पुण्यहै, वह कृतार्थ है, वह कृतपुण्यवाली है, वही अच्छ शरीरके लक्षणवाली है। तथा द्रव्य संपदा रूप विभवाली है, उस का मनुष्य जन्म सफल हुवा है कि जो अंकुर उत्पन्न होवे वैमा, प्रगट होकर वृद्धि पाता, आकाश में व्यापता, गरिव, विद्युत [विजसरी थोडी २ बुन्ध, व स्थनित.
प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ
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