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________________ 48ष्ठाइ ज्ञानार्धमकथा का प्रथम श्रुतस्कंध 4. पुथासवस्स दुरुयऊसास नीसासरम, दुरुय मत्तपूइय पुरिसस्स पुण्णरस सडण पडण । विद्धंसण जाव धम्मस्स केरिसए परिणामे भविस्सति ॥ तंमाणं तुब्भे देवाणुप्पिया ! माणुस्सएकामभोगेमु सजह रजह गिझह मुझह, अजोववजह ॥ १२५ ॥ . एवंखलु देवाणुप्पिया! अम्हे इयातो तच्चेभरगहणे अवरविदेहे वासे सलिलावति विजए वि. यसोगाए रायहाणिए महव्वल पामोक्खा सत्तपिय बालवयंसया रायाणी होत्था,सहजायया जाव परइया,ततेणं अहं देवाणुपिया ! इमेणं कारणेणं इत्थीणामगायकम्मं निव्वत्तेमि ॥ जतिगं तुम्भं चीत्थं उसपजित्ताणं विहरह ततेणं अहं छटुं उवसंपज्जिताणं विहरामी, छदन विधमन सभाववाला इन उदारिक शरीर का कैमा परिणाम होगा ? इस से अहो देवानुपिय! तुम मनुष्य के काम भोगों में आमक्त मत बनो, मूत मत होवो, उस में तन्मय मत बनो ॥ १२४ ॥ अहो देवानुप्रिय ! इस से ती मरे भव में अपन अपर विदेह क्षेत्र में सलीलावती विजय में महाबल प्रमुख सात बालमित्र थे, अपन साथ ही जन्म हुवे यावत् साथ ही प्रवर्जित हुए थे. उस समय जब तुम सब उपवास करते थे जब मैं बेला करती थी, तुप बेले करते थे, तब मैं तला करती थी, इमी कारन से मैंने स्वा नाम कर्म गोत्र उपार्जन किया. वहां से काल के अवसर में काल करके अपन सब जयंत विमान में 42श्रीमल्लीनाथजी का आठवा अध्ययन 4 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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