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________________ 4. अनुवादक-बालबमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - तसि जियसत्तु पामोक्ख छप्पिरायाणो एवं ययासी-किंण्ण तुम्भ देवाणुपिया सएहि २ उत्तरिजेहिं जाव परंमुहा चिट्ठह॥ततेणं जिसत्तू पामोक्खा मल्लीविदेहं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हे इमेणं असुभेणं गंधेणं अभिभूयासमाणा सएहिं २जाब चिट्ठामो॥ ततेगं मल्लीविदेह ते जियसत्तु पामोक्खे एवं वयासी-एवं खलु जइ ताव देवाणुप्पिया! इमी से कणगमयाए जात्र पडिभाए कल्लाकालं ताओ मणुन्नाओ अलणंपाणं खाइमं साइम एगमेगे पिंडेर विखप्पमाणे २ इमेयारूचे असुभ पोग्गल परिणामे. इमरस पुण उगलिय सरीरस्स, खलासबस्स, वंतासवस्स, पित्तासबस्स, सुक्कासवस्स सोणियासवरस, मल्ली विदह राजार कन्याने कहा कि अहो देव नुप्रिय ! तुम किम लिये अपने उत्तरासन से अपना ना ढकते यात् पराङ्ग मुख ह गये. जितशत्रु प्रमुख छ ही गमः ओंने कहा कि. अहो देवानुप्रिय ! हम इMal अशभ गंध में पराभव पाये हुने यावत् अपने नाक ढककर पगङ्गमुख बनकर बैठे हैं. तब वह मल्ली कुंवरी उन को एना बालो-अहो देवानुमेय ! इस मुवर्णमयी प्रतिमा में मैंने सदैन मनोज्ञ अशनादि में से एक पिंड डालती थी जिस से इस में इतने अशुभ पुद्गल परिणमे हैं तब श्लंष्प, अपन, पित्त, शुक्र, शोणित प्रश्रास के आश्रमवाला खराब उश्वास निश्वासवाला, खराव मुत्र विष्टादि से भरा हुवा, और सहण पडण mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm. प्रकाशक-राजाबहादुर लालामुखदेक्सझायनीज्वालाप्रसादजी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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