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4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिना
ताओ उहयम्ण संकप्पा जाब झियाह, तुम्भेणं ताओ, तोर्स जियसत्तु पामोक्खाणं छण्हंराईणं पत्तेयं २ रहस्तियं दुयं संपसेणं करेह, एगमेगं एवं वयहा-तवदामि मलिंविदेहवर रायकम्नं तिकटु, संज्झकाल समयसि पविरल मणुससि निसंत पडिनिसंतसि पत्तेयं २ महिलं रायहागं अणुप्पोसेह गम्भघरएसु अणुप्पवंसेह महिलाए रायहाणीए दुवारात पिहेह रोहामजे चिट्ठह ॥११९॥ ततेणं ते कुंभएराया एवं तं चेव ाव पवेसेति रोहसजे चिट्ठति ॥ १२ ॥ ततेणे से जियसन्तु पामो. क्खा छपिपरायाणो कल्लंपाउंभूया जाव जलंते जालंतरहिं कणगमयं मत्थयीछद्रं पउम.
प्पलपिहाणं पडिमं पासंति,एसणं मजीविदेह रायवर कन्नं तिकटु, मल्लीविदेह रायबहकणं करो परन्तु उन छही राजा को अलग में छुरे दुन भेजो और कहो कि मल्ली विदेह राज वर कम्या तु को देंग.* यों कहकर गय थोडे मनुष्य चल से शान्त संध्या समय पृथक २छा राजाओं को मिथिला नगरी में प्रवेश करावी वहां गर्भ घर में उन को रखो फर मिथिला राजधानी के द्वार बंधकर गहरोह से सज पनकर रो
१९॥ कम राजानेवैमा ही कर रोहमेजबनकर रहा. ॥ १.२. ॥ जित शत्र प्रमुख छही रज, प्रभात होते ही जाल के अंदर से सुवर्णपयी पस्तक में छिद्र बाली व पचपल के दक्कन वाली प्रतिमा देखी-
प्रकाशक-राजावादर लाला मुखदेवमहायजी ज्याप्रमाद।
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