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4. अनवादक-बाल ब्रह्मचारी पनि श्री शासक ऋषिजी
सेसं तहेव सव्वंतेणं तुब्भे देवाणुपिया! कालमासे कालंकिच्चा जयंते विमाणे उबवण्णा ॥ तत्थणं तुभं देसूणाई बत्तीसाइं सागरोवमाई,ट्रिइ पण्णत्ता ततेणं तुब्भे ताओ देवलोया
ओ अणंतर चयं चइत्ता-इहेव जंबूद्दीवेदीव जाव सयाई रज्जाइं उपसंपजित्ताणं विहरइ, ततेणं अहं देवाणपिया!ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं जाव दायित्ताए पयायाn (गाहा) किंचतयं पम्म? जच तया भो!जयतपरंमिव॒च्छा समयणिवद्धं देवाणुप्पियातंसंभरजाइ।। ॥१२६॥ ततेणंतेसिं जियसत्तु पामोक्खणं छण्ह राईणं मल्लीए विदेहरायवरकण्णह अंतिए एयभटुं साच्चाणिसम मुहणं परिणामेणं पसत्येणं अज्झवमणेणं,लेसाहिविसुज्झमाणीहिं तयावराणजणं कम्माण खउवसमाणं ईहापूह जाव सन्निजाईमरणे समुप्पन्न एयमटुंसम्म अभिस
प्रकाशक-राजाबादुर लामा मुखदवमहायजी ज्वालाप्रसादजी.
उत्पन्न हुए वहां तुम्हारी कुछ कम इत्तीन सागरोषम की स्थिति थे, उन देवलोक से तुम चाकर यहां जम्बूद्वीप में यावत् अपने २ र ज्य भोगवते रहते हो. और मैं वहां से आयुष्य क्षय कर चवकर यहां पर पुत्रोपने उत्पन्न हुई हूं. अहो श्रेष्ठ! विनय पिमान में अपन सबने मन परस्पर संकेत किया था
मृत्युलोक में गये पीछे प.तोध देना और सब को प्रजित होस, यह क्या भूल गये. इस से तुप पूर्व 16जन्म स्मरण करो ॥१॥ १२६ ॥ जितशत्रु प्रमुख छ राजाओं -ल्ली विदह राजवर कन्या की पास से
ऐमा सुन कर शुभ परिणाम, प्रशस्त अध्यवसाय विशुद्ध लेइया से उपयोग लगाते गत भव देखने का
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