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________________ सूत्र अर्थ ॐ अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी उप्फडिताणं गच्छइ २ त्ता एवं वयासी- एव महालएणं देवाणुप्पिया ! से समुद्दे ? णो इट्टे समट्ठे || तब एवा मेत्र तुमपि जियसत्तु ! अन्नेसिं बहुणं राईसर जाव सत्यवाह पनिईणं भजंग भगिनिंवा धूयंवा सुहंवा इत्थियं अपासमाण जाण सि जरिएणं ममं उरो तरिसए नो अन्नरस तं एवं खलु जियसत्तु मिहिलाएवा नयरी कुंभगस्तरण्णो धूयाए पभावइएदवी अतिया महीनागं विदेहावर कृण्णा रूय जीव जात्र न खलु अन्नोकाइ देवकण्यावा जारिया मजीविहरायवरकण्णाए विच्छ विपायंगुट्ठस्त इमेतत्र उरोहं रायसहस्तिमंपिकलं णअग्घइ त्तिकट्टु, जामवदिसिं पाउन्भूया तामेवदिसिं पडिगया ॥ १०८ ॥ तरणं जिवसतुराया जाकर बोला कि क्या इतना बडा है ! तब उसने उत्तरादेया कि यह अर्थ योग्य नहीं है. इस से बहुत ही बडा है. ऐसे ही अहो जितशत्रु ! तुम अन्य बहुत राजश्वर तलवर, सार्यवाह प्रमुख की भय, भगिनी, पुत्री, या पुत्रवधूस्त्रयों को बिना देखे जानता है कि मेरे अंतःपुर जैसा अन्य किसी का नहीं है. अहो जित शत्रु ! मिथिला नगरी में कुंभराजा की देवी की अपना मल्ली विदेह राजकन्या है छेदेन किये हुवे पत्र के अंगूठे मे जिंका अपने स्थान गई || १०८॥ उस के जैसी अन्य कोई देवदानव व गंधर्व कन्या भी नहीं है. इस के लाखने भाग में भी तेरे अंपुर में कोई भी नहीं है. ऐसा कहकर वह Jain Education International For Personal & Private Use Only ● प्रकाशक राजबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी ३८० www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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