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...इन्ध 48+
र समुद्दए ददुरे हब्वमागए, तएणं से कुब्वे ददरे तं समदद दरं एवं वयासी-से * केप्तणं तुम देवापुप्पिया ! कतेवाइह हवमागए?तए गं मे समुदद्दरे तं कुव ददुरं एवं
वयाल देवाणप्पिया ! अहं समुदए दद्दरे ॥ तएण कवदहरे त समयं द
के महलएगा देवाणु प्पिया ! से समुदे ? तएणं से समुदददुरे तं . यानी- हाल एण देवाणप्पिया ! समुदे ॥ तएणं से कुवदईरे
गं कलेर एवं पयासी एवंचए महालए. देवाणुप्पिया ! से समुद्दे ? णो इ, मढे ! हाल एणं समुद्दे ॥ तएणं से कुबददुर पुरच्छिमिलाओ तीराओ थारे जो कुच्छ कूता या मागर है पत्र यही है. एकदा उम कूचे में एक सपद्र का मेंडक आया. तब | उ के भडकने उो पूछा कि अहो के नुप्रिय ! तु कौन है और यहां क्यों आया है ? उसने उ ग कि अहो देवानुपिय ! मैं समुद्र का मेंडक हूं. फीर उसने पूछा कि तेरा समुद्र कितना
पड ? उसने उत्तर दिया कि बहु। बडा मेरा समद्र है, तब उस कूचे के मेंडकने को में पांत्र के ॐ नख से मर करके कहा कि क्या इतना बड़ा है ? उसने उत्तर दिया कि यह योग्य नहीं अर्थात् इस २ से बहुत ही बडा समुद्र है,फीर कूवे का मेंडक फलांग मारकर कूरे के पूर्व किनारे से पश्चिम के किनारे पर
48 श्रीमल्लीनाथनी का आठवा अध्ययन
48 पष्टांग बताया
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