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पटान ज्ञाताधर्मकथा की ग्रथम श्रुतस्पन्य 48
जणवा मु कंपिल पुरेणाम णयरे होत्था जियसतुनःमंराया पंचालाहिवइ तस्सणं जियसतरस रण्णे धारिणी पामोक्खंदविसहस्सं उरोहे होत्था। ९९।तत्थणं महिलाए रायाहाणएचोक्खनाम परिवाइया परिवम्इ रिउया. जाव परिणिट्टियापि होत्थः।। १००॥ ततेणं सा चोक्खा परिव्व इया महलाए रायहाणीए बहुणं राईसर जाव सर स्याह पभिईणं पुरतो दाणधम्मंच सोयधम्मच तित्थाभिमेयंच आघमाणी, पण्णवेमाणी, परूवेमाणी उबदस माणी विहरति ॥१० १॥ततेणं सा चोरव परियइ अन्नया कयाई तिदंडच कुंडियंच जाव धाउरत्ताओय
गेहति २त्ता परिब्वायगावसहाओ पडिनिक्खमइ पडिणिक्खमेइसापविरलपरिवाइयासद्धिं # उस क ल उस समय में पांच ल देश में कंपिलपुर नगर था. पांचाल देश का अधिपति जितशत्रु राजा
राज्य काता था. उस को धारणी प्रम व एक हजार रानियों का अन्नापुर था: ॥१९॥ उकाल उस समय मिथिलानगरी में चोखा नाम की पत्ति जिका थी. वह ऋग्वेद आदि चारों वेद, सांठ तांत्रिक शास्त्रा
वगैरह में पढ़ता थी. ॥ १ ॥ वह चोखा परिव्राजका मिथिला नगरी में बहुत राजेश्वा यावत् ॐ सार्थना प्रमुखको दान धर्म, शौच धर्म व तीर्थाभिवेक प्ररूपती हुई उपदेश करती हुई विचरती थी. ॥१.० १ ||
एकदा वह खा परिवजिहा दंड कमंडल य बत् ग से रंगित वस्त्र ग्रहण कर अपनी बसते में से नीकल
श्री मल्लीनाथ जी का आठवा अध्ययन +80%
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