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संपरिवडा मिहिलं रायहाणि मज्झमझेग जेणेव कुभस्सरनो भवण जेणेव मल्लीविदह रायवरकण्णा तेणेव उवागच्छइ २ त्ता उदयपरिफ सियाए दभोवरिपवत्थया तिभिसिया
ते निसीयइ २ त्ता मनीएविदेह रायवरकणओ पुरओ दाणधम्मं जाव विहरंति ॥१०२॥ ततेणं मल्ली विदेहरायवरा कण्णा चोख परिवाइयं एवं क्यासी-तुब्भेणं!चोक्खे किं मूलए धम्म पण्णत्त।ततेणं सा चोक्खा परिवाइया मल्लिविदेह रायवरकन्नाए एवं वयासी-अम्हाणं . देवाणुप्पिए ! सोय मूलए धम्मे पन्नतमि जहेणं अम्हं किंचि अतुइभवइ तण्णं उदयणय मट्टीयणय जाव अविग्घणं सगं गच्छामो ॥ ततेणं मल्लीवादेह रायवरकण्णओ चक्खा
परिव्वए एवं वयासी-चोक्खा से जहा णमाए. केइपूरिसे रुहिरकयंबत्थं रुहिरेणचेवधोवेजा, अर्थ / कर थोड़ी परिव निकाओं की साथ परमरी हुई मिथिला नगरी की बिच में होती हुई कुंभ राजा के भुवन के
मे मल्ली विदेह राज वर कन्या के पा? आई. वहां पानी से भूमिपर सिंचन किया, दर्भासन विछया और उस पर बैठकर मल्ली कुंवरी के आगे दान धर्म की प्ररूपणा करने लगी. ॥ १०२ ॥ मल्ली कुंवरीने चोखा परिव निका को पुछा कि अहो गेखे! तुम्हारा धर्म का क्या मूल है ? चे कख परिव्रविकाने उत्तर दिया। कि हमारा धर्मका मूलऋषि और जिसस्थान किसी भी प्रकार की अशुचि होवे तो पानीपिट्टीने लीपकर उस
अनुवादक-बासाह्मचारी पनि श्री अमोलक ऋषिजी ।
काशक जाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी .
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