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सूत्र
भावार्थ
43 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
गब्भं वक्कममाणसि अण्णयरे एवं महासुमिणे पासित्ताणं पंडिवुज्झति ॥ इमेय सामी ! धरणि देवीए एगे महामुमिणेदिट्ठे तं उरालेणं सामी ! धारिणीए देवीए मुमिणदिट्ठे, जाव आरोग्ग-तुट्ठिी- दीहाउ - मंगल - कारगाणं, कल्लाण-कारएणं सामी ! धारिणीदेवीए सुमिदिट्ठे ; अत्थलाभो सामी !, भोगलाभोसामी ! पुत्तलाभो, रज्जलाभो, एवं खलु सामी! धारणीदेवीए सुमिणेदिट्ठे, णवण्हंमासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव दारगपयाहिसि ; सेत्रियणं दारए उमुक्कवालभावे विष्णाय परिणयमिचे जोव्वणगमणुपत्ते सूरे वीरे विक्ते विच्छिण्ण-विपुल- बलवाहणे -रज्जवईराया- भविस्सइ, अणगारेवा भावियप्पा ॥ तं उरालेणं सामी ! धारिणी देवीए सुमिणेदिट्ठे, जाव आरोग्गतुट्ठि जाव दिट्ठे तिकडु, अहो स्वामिन्! इसमें से धारणी देवीने एक स्वप्न देखा. वह स्वप्न अहो स्वामिन् ! अत्यन्त उदार प्रधान, यावत् आरोग्य, तुष्टता, दीर्घायुवाला, मंगलिक व कल्याणकारी स्वप्न देखा है. अहो स्वामिन् ! इस से {आपको अर्थ लाभ, पुत्र लाभ, भोग लाभ, व राज्य लाभ होगा. अहो स्वामिन् ! सवानवमास प्रतिपूर्ण हुए पीछे यावत् धारणी देवीके सुरूप पुत्र होगा. वह पुत्रभी बाल भावसे मुक्त होकर विज्ञान अवस्थाको मास हुवे पीछे शूरवीर, पराक्रमवंत, और विस्तीर्ण बल, वादनवाला राजाओं का राज होगा. अथवा तो भावितात्मा अनगार-साधु होगा. इससे अहो स्वामिन्! धारणी देवीने उदार प्रधान यावत् आरोग्य तुष्ट स्त्रम, देखा है.
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• प्रकाशक सजाबहदुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी
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