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पष्टांग ज्ञाताधर्मकयों का प्रथम श्रुतस्कम 488
अरहंतमायगवा चकवाटिमायरोया- अरहंतसिवा चकाटिसिवा गम्भं वक्कममाणसि एएसिं तीसाए महासुभिणाणं इमे चउद्दस महासुमिणा पासित्ताणं पडिबुझंति, तंजहःगय, वसह, सींह, अभिसेय, दाम, ससि, दिणयरं, उझयं, कुंभ, पउमसर, सागर, विमाण, भवण, रयणुच्चय, सिहिंच ॥शसुदेव मायरोवा वासुदेवसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसिं चउदस्खण्हं महासुमिणाणं अण्णयरे सत्तमहासुभिणे. पासित्ताणं पडिबुझंति ॥ बलदेवसायरोवा बलदेवसि गम्भं कक्कममाणसि एएसिंच चउदसण्हं महासुमिणाणं
अण्णयरे चत्तारि महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुझंति, मंडलिय मायारोवा मंडलियं स्वामिन स्वप्न शास्त्रमें हमने सब मीलकर बहोत्तर स्वप्न देखे हैं. जिनमें ४२ खराब हैं व सीस महास्वप्न उत्तम हैं,इनमें से अरिहंत अथवा चक्रवर्तीकी माता जब अरिहनया चक्रवर्ती गर्भमें आते हैं तब चौदह स्वप्न देख कर जाग्रत होती है जिन के नाम-गज, २ वृषभ, ३ सिंह, ४ अभिषेक लक्ष्मी ५ पुष्पमाला : ७ सूर्य, ८ धजा, ९ कुंभ, १० पद्म सरोवर, ११ सागर १२ विमान अथवा भुवन, १३ रन की राशि र १४ अप्रिशिखा. जब वामदेव गर्भ में आते हैं तब उन की माता इन में से कोई भी सात सन
ती हैं,बल देवगर्भमें आते हैं. तब बलदेवकी माता इनमें से कोई भी चार स्वप्न देखकर जाग्रत होती हैं. और मंडलिकराजा गर्भपाते हैं. मंडलिकराजाकी माताइनमें से किसी भी एक सण देखकर जाग्रत होती है.
भावार्थ
उत्क्षिप्त (बंधकुमार) का प्रथम अध्ययन 488
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