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प्रकाशक-राजारहादुर
मुनि श्री अमोलक ऋषिणी 48. अनवादक-पालन मी
विड्डे सणियं २ पच्चो सक्काइ॥तएगं तं मल्लदिन्नं कमारं अम्मधाइ साणियं २ पच्चीसवंत
पासित्ता एवं वयासी-किण्णं तमं पुत्त लजिए बिल्लिए विडु सणिय २ पच्चो मछाह ? ॥ तएणं मल्लदिन्नं अम्मधति एवं वयासी- जुत्तंणं अम्मो ! मम जलाए भगिणीए गुरुदवयभूयाए लजपिज्जाए ममचित्तागणवत्तियसभ अणुपविसित्तए ॥ तएणं अम्मधाति मलादणंकमारं एयं क्यासी-नो स्खल पत्ता ! एस मल्ली, एसणं मल्लीएविदेह रायवरकणाए चित्तगरएणं तयाणुरू णिव्यत्तिए । ९३ ॥ ततेण
मल्लदिन्न अम्मधाइ एयम सोचाणिसम्म आ रुत्ते एवं वयामी केसणं भौ! चित्तगरए है उस की अम्मा धात्री घोली अहो पुत्र ! तुम क्यों ले.जिन हाकर पीछे हटत हो ? मल्लंदन कुमार अपनी अम्मा धात्री ने इस प्रकार कहने लगा. अहा यानमा लज्ज. सान्न क. ऐपो मग चत्र सभा ममेरे गुरु देव सपान जष्ठा भागाने को प्रवेश करना का योग्य है ? तब वह अम्बाध त्र मल्लनिकमार स ऐना बाली कि अहो पुत्र! यह ल कुमारी परंतु निमारने मल्लविदहगजवरकन्या का ऐ । रूप बनाया है॥ १३ ॥ अम्म धान की पाम स एना सुनकर मल्लो दिन कुमार पासुक्त हुवा और ऐ बोला : ऐसा अमाव की प्रार्थना करनेवाला यावत् श्रे, हीपजित चित्रकार ौन है कि जितने मरी
रायको ज्वालाप्रमादजी.
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